Three tier panchayati raj system: भारत एक लोकतांत्रिक (democratic) देश है। यहां सभी वयस्क नागरिकों को ग्राम पंचायत से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद के सदस्यों को चुनने का अधिकार है।
हमारे देश में पंचायती राज प्रणाली संविधान के 73वें संशोधन के बाद सभी राज्यों में लागू है। पंचायती राज व्यवस्था के तहते ग्रामीण भारत में अपने प्रतिनिधि जैसे- सरपंच, ग्राम प्रधान, मुखिया, वार्ड सदस्य, बीडीसी सदस्य और जिला पंचायत सदस्यों का चुनाव सीधे ग्रामवासियों द्वारा ही होता है।
आज हम इस ब्लॉग में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था क्या है? इसे विस्तार से जानेंगे।
तो आइए, सबसे पहले पंचायती राज की गांव स्तर पर ग्राम पंचायत क्या है (gram panchayat kya hai? इसे जान लेते हैं।
त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था, भाग-1 (ग्राम पंचायत)
त्रि-स्तरीय पंचायत-व्यवस्था (three tier panchayati raj system) में ग्राम पंचायत (gram panchayat) को ग्राम विकास की पहली इकाई मानी गई है। पंचायतों को विकेंद्रीकरण कर इसे 3 स्तरों पर विभाजित किया गया जिससे ग्रामीणों क्षेत्रों का बेहतर विकास हो सके।
त्रि-स्तरीय पंचायत-व्यवस्था (three tier panchayati raj system) के अंतर्गत सबसे निचले स्तर पर ग्राम पंचायत (Gram Panchayat) होती है। इसका चुनाव ग्राम सभा द्वारा किया जाता है। ग्राम सभा की पंचायत ग्राम पंचायत (gram panchayat) कहलाती है। ग्राम पंचायतें ही ग्राम स्तर पर एक ऐसी संस्था है जो अपने आप में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका भी है।
ग्राम पंचायत हमारी सदियों पुरानी परम्परा से चली आ रही पंचायत व्यवस्था का संस्थागत एवं विकसित रूप है। वर्तमान में सदस्यों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ उन्हें चुनने का तरीका भी बदल गया है।
आसान शब्दों में कहें तो ग्राम पंचायत (Gram Panchayat) हमारे गणतंत्र की सबसे अनोखी संस्था है। क्योंकि इनके सदस्य प्रत्यक्ष्य रुप से जनता द्वारा चुने जाते हैं।
अब इन सदस्यों को लोकतांत्रिक ढंग से प्रत्यक्ष रूप चुना जाता है। इन्हीं सब कारणों से ग्राम पंचायत (Gram Panchayat) त्रि-स्तरीय पंचायत राज की सबसे महत्वपूर्ण संस्था है और इसके निर्वाचित सदस्य सबसे महत्वपूर्ण प्रतिनिधि, उनका उत्तरदायित्व सीधे जनता के प्रति है न कि प्रशासन या शासन के प्रति। इसलिए ग्राम पंचायतों को सशक्त, जागरुक एवं सक्रिय होना पंचायती राज (Panchayati Raj) की पहली आवश्यकता है।
ग्राम पंचायत का गठन (gram panchayat ka gathan)
ग्राम पंचायत के प्रतिनिधि अर्थात् सरपंच, वार्डपंच, क्षेत्र पंचायत के सदस्य और जिला परिषद के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं द्वारा बहुमत के आधार पर निर्वाचित होते हैं।
लगभग 500 की आबादी पर एक वार्ड का गठन होता है और प्रत्येक वार्ड से एक ग्राम पंचायत सदस्य (वार्डपंच) निर्वाचित होता है। सरपंच, उपसरपंच और सभी वार्ड सदस्यों को मिलाकर एक ग्राम पंचायत का गठन होता है।
पंचायती राज-व्यवस्था (Panchayati Raj System) के नियमों के अनुसार ग्राम पंचायत के सदस्यों की संख्या उस ग्राम पंचायत की आबादी पर निर्भर करती है।
ग्राम पंचायत चुनाव (gram panchayat chunav)
ग्राम पंचायत के सदस्यों और सरपंच का चुनाव गांव के ही मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली द्वारा 5 वर्ष के लिए किया जाता है। यदि पंचायत के सामान्य चुनाव में सरपंच का चुनाव नहीं हो पाता है और पंचायत के लिए दो तिहाई से कम सदस्य ही चुने जाते हैं तो इस दशा में सरकार एक प्रशासनिक समिति बनाकर ग्राम पंचायतों के कार्यों को संचालित करती है।
इसके लिए जिला पंचायत अधिकारी एक प्रशासक भी नियुक्त कर सकती है। लेकिन प्रशासनिक समिति या प्रशासक का कार्यकाल 6 माह से अधिक नहीं होता है।
इस अवधि ग्राम पंचायत, उसकी समितियों तथा प्रधान के सभी अधिकार इसमें निहित होंगे। इन छ: माह में राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कराकर पंचायत का गठन किया जायेगा।
ग्राम पंचायत में आरक्षण (Reservation in Gram Panchayat)
किसी ग्राम पंचायत (Gram Panchayat) में प्रत्येक निर्वाचन से पहले चुनाव आयोग निर्वाचन नियमावली के प्रावधानों के अनुसार नवीनतम जनगणना आंकड़ों के आधार पर सामान्य वर्ग, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या के अनुपात में उस निर्वाचन क्षेत्र में उनकी सीट आरक्षित की जाती है।
महिलाओं के लिए ग्राम पंचायतों में आरक्षण (Reservation for women in gram panchayats)
कमजोर वर्गों की भाँति महिलाओं को भी स्थानीय शासन में कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं था। 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम के तहत महिलाओं को भी उचित दिया गया। पंचायतों में सभी सीटों पर महिलाओं के लिए (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं सहित) एक तिहाई (⅓) स्थान आरक्षित किए गए हैं।
पंचायत आरक्षण व्यवस्था प्रत्येक 5 वर्ष बाद चक्रानुक्रम/रोस्टर के अनुसार आवंटित किए जाते हैं।
वर्तमान में भारत के लगभग सभी राज्यों में अब महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं।
ग्राम पंचायत का कार्यकाल (gram panchayat ka karyakal)
ग्राम पंचायत की पहली बैठक के दिन से 5 साल तक ग्राम पंचायत का कार्यकाल (gram panchayat ka karyakal) होता है। यदि पंचायत को उसके कार्यकाल पहले भंग किया जाता है तो ग्राम पंचायत में 6 माह के अंदर पुन: चुनाव कराकर पंचायत का गठन किया जाता है। इस नव निर्वाचित पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष के शेष बचे हुए समय के लिए होगा।
ग्राम पंचायत के कार्य, एवं शक्तियां (gram panchayat work details)
प्रत्येक स्तर पर पंचायतों के कार्य एवं दायित्वों की सूची तैयार की गई है। इस सूची के अन्तर्गत पंचायतों की 29 जिम्मेदारियाँ सुनिश्चित की गई है। संविधान के 73वें संशोधन द्वारा 29 विषय पंचायतों के अधीन किये गये हैं, जिसके लिये पृथक से 73वें संविधान संशोधन में 243 (G) 11वीं अनुसूची जोड़ी गई है।
इस सूची में शामिल विषयों के अन्तर्गत आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और विकास योजनाओं को अमल में लाने का दायित्व पंचायतों का होगा।
संविधान की 11वीं अनुसूची के अन्तर्गत ग्राम पंचायतों की कुछ जिम्मेदारियां सुनिश्चित की गई है। प्रत्येक ग्राम पंचायत अपने कार्यों का संपादन निष्ठापूर्वक करेगी।
सरपंच के कार्य (sarpanch ke karya)
- ग्राम सभा की बैठक बुलाना और उसकी अध्यक्षता करना।
- ग्रामीणों की अपेक्षाओं को जिला परिषद्, पंचायत समिति व जिला प्रशासन से लेकर राज्य सरकार तक पहुंचाना
- ग्राम पंचायत की सार्वजनिक सम्पत्ति का सदुपयोग करवाना।
- हर महीने ग्राम पंचायत की कम से कम 2 बैठक सार्वजनिक स्थान या पंचायत घर पर बुलाना
- पिछली बैठक में लिए गए निर्णयों पर की गई कार्यवाही की रिर्पोट पढ़कर सबके सामने रखना।
ग्राम सचिव के कार्य (gram sachiv ke karya)
प्रत्येक ग्राम पंचायत में सरकार द्वारा नियुक्त एक ग्राम सचिव होगा जो ग्राम पंचायत तथा सरकार के बीच एक कड़ी के रूप मे कार्य करेगा।
ग्राम पंचायत द्वारा पारित प्रस्तावों का रिकार्ड रखना व उनके क्रियान्वयन में सहायता करना। ग्राम पंचायत की कार्यवाही को विवरण पुस्तिका में दर्ज करना।
‘ग्राम पंचायत विकास योजना’ में नागरिकों की जरूरतों और उनकी प्राथमिकताओं का उपलब्ध संसाधनों के साथ मेल खाना जरूरी है। यह योजना ग्राम पंचायतों को पारदर्शी और भागीदारी प्रक्रिया से सभी ग्रामवासियों को शामिल करके बनानी चाहिए। ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी है कि वह स्थानीय नागरिकों, गरीबों और हाशिए के लोगों के लिए सही योजना बनाकर बुनियादी सेवाएं दिलवाए।
ग्राम सभा की बैठक (Gram Sabha meetings)
ग्राम सभा की सामान्य बैठकें साल में 4-5 बार सरपंच द्वारा बुलाई जाती है। ग्राम सभा की विशेष बैठकें सरपंच अपनी मर्जी से या पंचायत समिति या 1/10 ग्राम सभा सदस्यों द्वारा लिखित में दिए जाने पर बुलायी जा सकती है।
ग्रामसभा की बैठक में सभी पंचों, ग्राम सचिव, खण्ड विकास व पंचायत अधिकारी, शिक्षा अधिकारी इत्यादि का भाग लेना जरूरी होता है।
ग्राम सचिव ग्राम सभा की कार्यवाही को लिखता है। बैठक की कार्यवाही लिखने के पश्चात सरपंच, पंच तथा उपस्थित सभी लोगों के हस्ताक्षर करवाए जाएंगें या अंगूठे के निशान लगवाए जाएंगें।
ग्राम पंचायत विकास योजना गांव के विकास और बुनियादी सेवाओं के लिए एक वर्ष की योजना है, जिसे सरपंच, पंच और ग्रामीण मिलकर बनाते हैं।
ग्रामसभा का महत्व (Gram Sabha ka mahatva)
ग्राम सभा के सदस्य ग्राम पंचायत के माध्यम से अपने गाँव की सरकार चलाते हैं। ग्राम पंचायत में जो भी आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की स्कीम में बनाई जाती हैं, उन स्कीमों व उनके बजट को ग्राम सभा की बैठक में चर्चा करके ही मंजूरी मिलती है। जिसका पंचायती राज अधिनियम में विस्तृत उल्लेख है कि ग्राम सभा, ग्राम पंचायतो को पारदर्शी ढंग से अपनी जिम्मेदारियां निभाने व लोगों के प्रति जवाबदेह बनाने में सहयोग करेगी।
अतः ग्रामसभा (Gram Sabha) को सुदृढ़ करना सभी ग्रामवासियों को बहुत जरूरी है ताकि लोगों की भागीदारी से गाँव का बेहतर विकास हो सके।
त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था, भाग-2 (पंचायत समिति)
पंचायत राज की त्रिस्तरीय (three tier panchayati raj system) संरचना में ग्राम स्तर से ऊपर अर्थात मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत समिति (क्षेत्र पंचायत) होती है। पंचायत समिति को देशभर में कई नामों से जाना जाता है। पंचायत समिति का गठन भी सभी राज्यों में एक समान नहीं है। इसे पंचायत समिति, ‘क्षेत्र समिति’ क्षेत्र पंचायत और ‘आंचलिक परिषद’ भी कहते हैं।
इस मध्यवर्ती स्तर को आंध्र प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान में पंचायत समिति कहा जाता है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में इसे क्षेत्र पंचायत (kshetra-panchayat) असम में ‘आंचलिक पंचायत समिति’, पश्चिम बंगाल में ‘आंचलिक परिषद्’, गुजरात में ‘तालुका परिषद्’, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ‘जनपद पंचायत’ कर्नाटक में ‘पंचायत संघ परिषद्’ कहा जाता है।
पंचायत समिति (क्षेत्र पंचायत समिति) का गठन
राज्य सरकार प्रत्येक जिले को विकास के लिए कई ब्लॉक/खण्डों में बांटती है। जिसका निर्धारण भी राज्य सरकार तय करती है। प्रत्येक ब्लॉक/खण्ड को विकास खंड कहा जाता है।
73वें संविधान संशोधन के अनुसार प्रत्येक विकास खण्ड में एक क्षेत्र पंचायत का प्रावधान है। इसी ब्लॉक के स्तर पर पंचायत समिति का गठन किया जाता है।
जहाँ लगभग 5000 की आबादी पर एक पंचायत समिति होता है। इसके सदस्यों का चुनाव मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।
इन्हीं पंचायत समिति के सदस्यों द्वारा ब्लॉक/खंड स्तर पर ब्लॉक प्रमुख/पंचायत समिति के अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है। पंचायत समिति के कार्यों के संपादन के लिए राज्य सरकार द्वारा खंड विकास अधिकारी (BDO) नियुक्त किए जाते हैं।
पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत पंचायत समिति मध्यवर्ती पंचायत के रूप में जाना जाता है। यह ग्राम पंचायत एवं जिला पंचायत के बीच कड़ी का कार्य करता है। प्रखंड(ब्लॉक) की समस्त ग्राम पंचातयों के मध्य सामंजस्य बनाकर सभी विकास कार्यों को चलाना पंचायत समिति का ही काम है। ऊपर से प्राप्त होने वाले अनुदान का ग्राम पंचायतों के मध्य विभाजन पंचायत समिति द्वारा ही किया जाता है।
पंचायत समिति की बैठक (Panchayat Samiti meeting)
पंचायत समिति की बैठक पंचायत राज अधिनियम के अनुसार दो माह में एक बार बुलाना आवश्यक है। बैठक की सूचना कार्यपालक पदाधिकारी द्वारा पंचायत समिति के सभी सदस्यों को 10 दिन पूर्व भेजनी होती है। पंचायत समिति की प्रत्येक बैठक साधारणत: पंचायत समिति के खंड मुख्यालय में की जाती है।
पंचायत समिति बैठक का कोरम कुल सदस्यों की संख्या के आधे सदस्यों की उपस्थिति से पूरा होगा। बैठक में कोरम पूरा नहीं होने पर बैठक दुबारा बुलाने का प्रावधान है। इस प्रकार दोबारा बुलाई गई बैठक में कुल सदस्यों की संख्या के पाँचवें भाग, अर्थात् 20 प्रतिशत की उपस्थिति से कोरम पूरा होने का प्रावधान है। इससे कम विधिमान्य नहीं है।
पंचायत समिति की बैठक की अध्यक्षता प्रमुख और उनकी अनुपस्थिति में उप प्रमुख को करता है। यदि प्रमुख/उप प्रमुख दोनों अनुपस्थित हो तो उपस्थित सदस्यों के बीच से एक सदस्य का चयन अध्यक्षता के लिए किया जायगा।
पंचायत समिति के अधिकारी (Panchayat Samiti officials)
पंचायत समिति का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी खंड विकास अधिकारी होता है। इस पदाधिकारी के नीचे कई सहायक विकास अधिकारी होते हैं जो कृषि, सहकारिता, पशुपालन इत्यादि के विशेषज्ञ होते हैं।
पंचायत समिति की बैठक में संबंधित इन पदाधिकारियों का उपस्थित रहना अनिवार्य है, जो बैठक के संचालन में भी हिस्सा लेते हैं।
क्षेत्र पंचायत में आरक्षण (Reservation in Kshetra Panchayat)
क्षेत्र पंचायत के प्रमुख और क्षेत्र पंचायत सदस्यों के पदों पर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार आरक्षण व्यवस्था का प्रावधान है।
पंचायती राज अधिनियम के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ी जाति के लोगों के लिए आरक्षण लिए आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात पर निर्भर करता है।
इसके अलावा सभी पदों एक तिहाई (⅓) सीट महिलाओं के लिए आरक्षित रखने का प्रावधान है। वर्तमान समय में कई राज्यों में महिलाओं के लिए यह आरक्षण बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया है। इन राज्यों में पंचायतों के प्रत्येक दूसरा पद महिलाओं के लिए आरक्षित है। लेकिन, यह आरक्षण प्रणाली चक्रानुक्रम/रोस्टर के अनुसार आवंटित किए जाते हैं।
क्षेत्र पंचायत की आय के स्रोत (Sources of income of Kshetra Panchayat)
क्षेत्र पंचायत की आय के स्रोत शासन द्वारा प्राप्त हाने वाली अनुदान एवं ऋण के रूप में प्राप्त होने वाली धनराशि है। क्षेत्र पंचायत अपने निजि संसाधनों से भी आय अर्जित कर सकती है। जिसमें विभिन्न प्रकार के कर जैसे-इमारतों से आय, बाजार एवं मेलों का आयोजन, प्रदर्शनियां, बाग-बगीचे, शौचालय एवं अन्य सुविधायें आती हैं।
पंचायत समिति के कार्य (Panchayat Samiti ke karya)
पंचायती राज अधिनियम द्वारा पंचायत समिति को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गई। विकास खण्ड स्तर ग्रामीण जरूरतों के हिसाब से पंचायत समिति योजनाएं बनाती है। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों का संपूर्ण विकास हो सके।
पंचायत समिति के कार्य एवं दायित्व निम्नलिखित हैं। –
- केन्द्र तथा राज्य सरकार एवं जिला परिषद द्वारा सौपें गए कार्य करना।
- सभी ग्राम पंचायत के वार्षिक योजनाओं पर विचार विमर्श एवं समेकन करना तथा समेकित योजनाओं को जिला परिषद में प्रस्तुत करना।
- पंचायत समिति का वार्षिक योजना बजट पेश करना।
- कृषि एवं उद्यान की उन्नति एवं विकास करना, खेती के उन्नत तरीको का प्रचार प्रसार करना, किसानों के प्रशिक्षण का इंतजाम करना।
- सरकार के भूमि विकास एवं भूसंरक्षण कार्यकलापों के कार्यान्वयन में सरकार और जिला परिषद की सहायता करना।
- लघु सिंचाई कार्यों के निर्माण एवं अनुरक्षण में सरकार और जिला परिषद् की सहायता करना।
- गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम एवं स्कीमों का आयोजन और कार्यान्वयन करना।
- पशुपालन एवं पशु चिकित्सा सेवा का विकास एवं विस्तार करना।
- खादी ग्राम एवं कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित करना।
- ग्रामीण आवास योजनाओं का कार्यान्वयन तथा आवास स्थल का वितरण करना।
- ग्रामीण जलापूर्ति योजनाओं का कार्यान्वयन, मरम्मत एवं संरक्षण करना।
- शिक्षा के अन्तर्गत प्राथमिक विद्यालय भवनों का निर्माण मरम्मत एवं संरक्षण आदि कार्य करना।
- सांस्कृतिक कार्यकलाप के अन्तर्गत सांस्कृतिक एवं खेल कूद कार्य कलापों का कार्यान्वयन।
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के अन्तर्गत स्वास्थय एवं परिवार कल्याण कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करना।
- महिलाओं एवं बच्चो के कार्यक्रम को कार्यान्वयन करना तथा इनके विकास हेतु कार्यक्रम का निर्माण करना।
- समाज कल्याण, जिसमें शारीरिक तथा मानसिक रूप से नि:शक्त लोगों के कल्याण हेतु कार्यक्रम तैयार करना तथा सरकार द्वारा चलाये जा रहे योजनाओं को कार्यान्वयन कराना।
- कमजोर वर्गो विशेषकर अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जन जातियों को कल्याण हेतु सरकार द्वारा चालायी गई योजनाओं का कार्यान्वयन करना।
पंचायत समिति का कार्यकाल (panchayat samiti ka karyakal)
पंचायत समिति का कार्यकाल पहली बैठक की तारीख से 5 सालों तक होता है। पंचायत समिति के सदस्यों का कार्यकाल यदि किसी खास कारणों से उनके नियत कार्यकाल से पहले भंग कर दिया जाता है तो 6 महीने के भीतर उसका चुनाव कराना जरूरी हो।
त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था, भाग-3 (जिला परिषद)
जिला स्तर पर जिला परिषद (जिला पंचायत) सबसे उच्च संस्था है जो ग्राम पंचायत एवं पंचायत समितियों के नीति निर्धारण व मार्गदर्शन का भी काम करती है। 73वें संविधान संशोधन के अन्तर्गत त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में जिले स्तर पर जिला परिषद (जिला पंचायत) के गठन का प्रावधान किया गया है। प्रत्येक जिले में एक जिला परिषद होती है जिसे कई राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
जैसे- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में ‘जिला पंचायत’।
जिला परिषद का गठन (how zila parishad is formed)
जिला परिषद का गठन जिला परिषद के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है। इसके अलावा उस जिले के अंतर्गत लोक सभा और विधान सभा के निर्वाचित सदस्य भी शामिल होते हैं। लेकिन ये सदस्य जिला परिषद के अध्यक्ष के निर्वाचन में शामिल नहीं होते हैं। इन सदस्यों को स्थाई सदस्य न कहकर पदेन सदस्य कहते हैं।
जिला परिषद के सदस्यों का चुनाव (zila panchayat ka chunav)
जिला परिषद के चुनाव के लिए जिला परिषद को छोटे-छोटे ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में बांटा जाता है जिसकी आबादी लगभग 50,000 होता है। इन सदस्यों का चुनाव ग्राम सभा सदस्यों द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा किया जाता है। जिला पंचायत के सदस्य के रूप में चुने जाने के लिए जरूरी है कि प्रत्याशी की उम्र 21 साल से कम न हो। यह भी जरूरी है कि चुनाव में खड़े होने वाले सदस्य का नाम उस निर्वाचन जिला की मतदाता सूची में शामिल हो।
जिला परिषद के अध्यक्ष का चुनाव (zila panchayat adhyaksh ka chunav)
राज्य निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार जिला पंचायत के निर्वाचित सदस्य यथाशीघ्र जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव (zila panchayat adhyaksh ka chunav) करते हैं। जिला पंचायत में कुल चुने जाने वाले सदस्यों में से यदि किसी सदस्य का चुनाव किसी कारण से नहीं भी होता है तो भी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव नहीं रूकता और चुने गए जिला पंचायत सदस्य अपने में से एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का चुनाव कर लिया जाता है।
यदि कोई व्यक्ति संसद या विधान सभा का सदस्य हो, किसी नगर निगम का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष हो, नगरपालिका का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष हो या किसी नगर पंचायत का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष हो तो वह जिला पंचायत अध्यक्ष या उपाध्यक्ष नहीं बन सकता।
जिला परिषद में आरक्षण (reservation in zilla parishad)
जिला परिषद के अध्यक्ष और जिला परिषद सदस्यों के पदों पर आरक्षण लागू होगा। पंचायती राज अधिनियम के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ी जाति के लोगों के लिए आरक्षण लिए आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात पर निर्भर करेगा।
इसके अलावा सभी पदों एक तिहाई (⅓) सीट महिलाओं के लिए आरक्षित रखने का प्रावधान है। वर्तमान समय में कई राज्यों में महिलाओं के लिए यह आरक्षण बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया है।
इन राज्यों में पंचायतों के प्रत्येक दूसरा पद महिलाओं के लिए आरक्षित है। लेकिन, यह आरक्षण प्रणाली चक्रानुक्रम/रोस्टर के अनुसार आवंटित किए जाते हैं।
नोट- अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोग अनारक्षित सीट पर भी चुनाव लड़ सकते हैं। इसी तरह से अगर कोई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित नहीं की गई है तो वे भी उस अनारक्षित सीट से चुनाव लड़ सकती हैं।
जिला परिषद अध्यक्ष और उसके सदस्यों का कार्यकाल
ग्राम पंचायत व पंचायत समिति की तरह ही जिला परिषद का एक निश्चित कार्यकाल होता है। पंचायती राज अधिनियम में दिए गए नियमों के अनुसार जिला परिषद का कार्यकाल जिला परिषद की पहली बैठक की तारीख से 5 वर्षों तक होता है।
जिला पंचायत के सदस्यों का कार्यकाल यदि किसी कारण से पहले नहीं समाप्त किया जाता है तो उनका कार्यकाल भी अर्थात 5 वर्ष तक होगा। यदि किसी खास वजह से जिला पंचायत को उसके नियत कार्यकाल से पहले भंग कर दिया जाता है तो 6 महीने के भीतर उसका चुनाव कराना जरूरी होगा। नए सदस्यों का कार्यकाल बाकी बचे समय के लिए होता है।
जिला परिषद की बैठक (zila parishad meeting)
जिला परिषद के कार्यों के संचालन हेतु संविधान में जिला परिषद की बैठक का प्रावधान किया गया है। जिसके अंतर्गत हर दो महीने में जिला परिषद की कम से कम एक बैठक जरूर होगी।
जिला परिषद की बैठक को बुलाने का अधिकार अध्यक्ष को है। अध्यक्ष की गैर हाजिरी में यह कार्य जिला परिषद उपाध्यक्ष करता है। इसके अतिरिक्त जिला परिषद की अन्य बैठकें भी बुलाई जा सकती है। सभी बैठक जिला परिषद कार्यालय में होगी। अगर बैठक किसी अन्य स्थान पर होना निश्चित की गई है तो इसकी सूचना सभी को पूर्व में दी जाती है।
बैठक में जिला पंचायत सदस्य अध्यक्ष या मुख्य विकास अधिकारी से प्रशासन से संबंधी कोई विवरण, आंकड़े, सूचना, कोई प्रतिवेदन, अन्य ब्यौरा या कोई पत्र की प्रतिलिपि मांग सकते है। अध्यक्ष या मुख्य विकास अधिकारी बिना देर किए मांगी गई जानकारी सदस्यों को देना होता है।
जिला परिषद के कार्य/ जिला पंचायत के कार्य (Zila Panchayat Sadasya Ke Karya)
जिला परिषद एक समन्वय और पर्यवेक्षण करने वाला निकाय है। जिला परिषद के कार्य निम्नलिखित हैं।
जैसे-
(1) जिला परिषद का वार्षिक बजट तैयार करना।
(2) राज्य सरकार द्वारा जिलों को दिए गए अनुदान को पंचायत समितियों में वितरित करना।
(3) प्राकृतिक संकट के समय राहत – कार्य का प्रबन्ध करना।
(4) पंचायत समितियों द्वारा तैयार की योजनाओं का समन्वय करना।
(5) पंचायत समितियों तथा ग्राम पंचायतों के कार्यों का समन्वय तथा मूल्यांकन करना।
(6) ग्रामीण और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देना।
(7) कृषि का विकास करना।
(8) लघु सिंचाई,मत्स्य पालन तथा जलमार्ग का विकास करना।
(9) अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़े वर्गों के कल्याण की योजना बनाना।
(10) शिक्षा का प्रसार करना।
इससे स्पष्ट है कि जिला परिषद पूरे जिले से आई प्राथमिकता और लोगों की जरूरतों को आकलन कर एक कार्य योजना (karya yojana) तैयार करती है, जो क्षेत्र विशेष के हिसाब से उनकी प्राथमिकताओं के आधार पर होती है। इस प्रकार जिला योजना में स्वीकृत योजना का क्रियान्वयन किया जाता है।
जिला परिषद अध्यक्ष के कार्य (zila panchayat adhyaksh ke karya)
जिला परिषद अध्यक्ष का प्रमुख कार्य जिला पंचायत तथा समितियों की जिसका वह सभापति है उनकी बैठक बुलाना और उनकी अध्यक्षता करना है। अध्यक्ष का कर्तव्य है कि वह बैठकों में व्यवस्था बनाए रखे तथा बैठकों में लिए गए निर्णयों की जानकारी रखे।
वित्तीय प्रशासन पर नजर रखना तथा योजनाओं के अनुरूप वित्तीय प्रबंधन की निगरानी करना। अध्यक्ष को ऐसे कार्य भी करने होते हैं जो सरकार द्वारा समय-समय पर उन्हें दिए जाते हैं।
जिला परिषद का बजट (zila parishad ka bajat)
जिला पंचायत को हर वर्ष जिले का वार्षिक बजट तैयार करना होता है। जिला पंचायत इस बजट को वित्त समिति के परामर्श से तैयार करेगी। इस तैयार बजट को पूर्व निर्धारित तिथि को जिला परिषद की बैठक में अध्यक्ष के माध्यम से प्रस्तुत किया जायेगा।
प्रस्तावित बजट को जिला परिषद अगर चाहे तो संशोधन हेतु वापस भी कर सकती है। अगर बजट वापस नहीं होता तो जिला परिषद इसे पारित कर देती है। यदि बजट संशोधन हेतु लौटाया जाता है तो कार्य समिति नए सिरे से इस बजट को बनाएगी जिसे अध्यक्ष द्वारा पुन: बैठक में प्रस्तुत कर पारित करवाया जायेगा।
जिला परिषद के अंतर्गत कार्य करने वाले अधिकारी (Zilla Parishad Officers)
- मुख्य विकास अधिकारी
- जिला पूर्ति अधिकारी
- उप क्षेत्रीय विपणन अधिकारी
- जिला वन अधिकारी
- अधिशासी अभियन्ता- लोक निर्माण विभाग
- अधिशासी अभियन्ता- विद्युत विभाग
- सामान्य प्रबन्धक- जिला उद्योग केन्द्र
- जिला अर्थ एवं संख्यिकी अधिकारी
जिला परिषद और पंचायत समिति के बीच संबंध (Relationship between Zilla Parishad and Panchayat Samiti)
जिला परिषद और पंचायत समिति के बीच उचित तालमेल व सामंजस्य के लिए 73वें संविधान संशोधन अधिनियम में विशेष प्रावधान किए गए है। जिसके अंतर्गत जिले में आने वाली समस्त क्षेत्र पंचायत के प्रमुख अपने जिले की जिला परिषद के भी सदस्य होते हैं।
योजना और कार्यक्रमों के नियोजन हेतु भी तीनों स्तर की पंचायतों को आपसी सामंजस्य से कार्य करने के नियम बनाए गए हैम। इन नियमों के अनुसार पंचायत समिति ग्राम पंचायत की वार्षिक योजनाओं के आधार पर अपनी पंचायत समिति के लिए विकास योजनाएं बनायेंगी। इस तैयार योजना को पंचायत समित अपने क्षेत्र की जिला परिषद को भेजेंगी।
इसी प्रकार जिला परिषद पंचायत समितियों की विकास योजनाओं के आधार पर अपने जिले के ग्रामीण इलाकों के लिए एक समग्र विकास योजना बनायेंगी। जिले के स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों की विकास योजना तभी सही तरीके से बन पायेंगी जब जिले की पंचायत समितियाँ सही समय पर योजनायें बनाकर जिला परिषद को भेजें।
ये भी देखें-
ये तो थी, ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के कार्य और अधिकार की जानकारी। ऐसे ही ग्रामीण विकास और पंचायती राज को पढ़ने के लिए द रूरल इंडिया की वेबसाइट विजिट करते रहें।