Bhed palan: 20वीं सदी के आखिरी तक गरीब परिवारों के लिए भेड़ पालन व्यवसाय आजीविका का एक बहुत जरूरी माध्यम था। लेकिन 21वीं सदी में देश के संपन्न किसान और बेरोजगार युवा भी भेड़ पालन (bhed palan) को अपना रहे हैं। कारण सिर्फ एक ही है- कम लागत, ज्यादा मुनाफा।
अतः इस लेख में हम आपको भेड़ पालन से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां दे रहे हैं जिससे आपको भेड़ पालन (Bhed palan) में आसानी हो सके।
तो आइए, द रुरल इंडिया के इस लेख में भेड़ पालन कैसे करें, (bhed palan kaise karen) जानें।
भेड़ पालन में निवेश (investment in sheep farming)
10 भेड़ों को पालने के लिए आपको 50-60 हजार रुपए का खर्च आएगा, इसमें भेड़ों की खरीद से लेकर आहार का खर्च शामिल है। अगर आप बड़े स्तर पर भेड़ पालन करना चाहते हैं तो आपको 1.5-2 लाख तक का निवेश करना पड़ सकता है।
भेड़ पालन व्यवसाय (sheep farming business) में भेड़ की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि उसकी नस्ल क्या है और वह कितने महीने की है। आमतौर पर यह 3 से 8 हजार के बीच में हो सकती है। अगर किसी किसान को इस व्यवसाय की शुरुआत करनी है तो विशेषज्ञ इसका तय फार्मूला बताते हैं।
जैसे- आप 20 मादा भेड़ और एक नर भेड़ (मेंढे) यानी 20+1 फार्मूला के साथ इस व्यवसाय को शुरू कर सकते हैं। महज 1 लाख रुपए में आपकी यह खरीददारी हो जाएगी। इनके लिए 500 स्क्वैयर फीट का बाड़ा पर्याप्त है। बस यह थोड़ा खुला होना चाहिए। यह बाड़ा आप 30 से 40 हजार के अंदर तैयार कर सकते हैं।
भेड़ों को एक दिन में कम से कम 6 घंटे चरने के लिए छोड़ा जाता है, अगर आसपास जंगल हो तो ठीक वरना आधा बीघा खेत (10 हजार स्क्वैयर) इनके चरने के लिए काफी है। इस तरह एक किसान अपने आधा बीघा खेत में महज सवा लाख के निवेश के साथ इस व्यवसाय को शुरू कर सकते हैं।
भेड़ पालन कैसे करें? (bhed palan kaise karen)
भेड़ पालन आप दो प्रकार से कर सकते हैं।
- खुले में चराकर (चारागाह विधि),
- बाड़ा विधि।
आहार की बात करें तो एक भेड़ पर रोजाना 5 से 7 रुपए का खर्च आता है। इनके रखरखाव और खान-पान में बहुत कम खर्च है। खेतों, पहाड़ियों या कम उपजाऊ इलाकों में उगने वाला चारा ही इनके लिए पर्याप्त होता है। गाय या भैंस की तरह इनके लिए अलग से खली या पशु आहार की जरूरत नहीं होती।
हां, आप खेतों में उगी ज्वार, मक्का व फली इन्हें काटकर खिला सकते हैं। कभी-कभी कुछ खनिज लवणों का मिक्सचर भी इन्हें खिलाया जाता है। इस तरह इनके पालन में ज्यादा खर्च नहीं होता। एक भेड़ करीब रोजाना 3-4 किलोग्राम तक चारा खाती है।
भेड़ों को किसी तरह के रोग होने पर भी खर्चा ज्यादा नहीं होता। संक्रामक बीमारियों से बचाने के लिए आप इन्हें भेड़ पालन के सरकारी संस्थानों (हर राज्यों में भेड़ पालन से जुड़े विभाग और सरकारी संस्थान होते हैं) से टीके लगवा सकते हैं, जो महज 1 या 2 रुपए मात्र में लगते हैं। रोग लगने पर इन्हीं सरकारी संस्थानों से बेहद कम कीमत पर किसान दवाईयां भी खरीद सकते हैं। इस तरह भेड़ों के रख-रखाव पर बेहद ही कम खर्च आता है।
भेड़ पालन से आमदनी
एक भेड़ 9 महीने में ही पूरी तरह वयस्क हो जाता है। आमतौर पर किसान 2 से 3 महीने की भेड़ों को खरीदते हैं। 6 महीने के रखरखाव के बाद ही ये रिटर्न देना शुरू कर देते हैं। भारत में भेड़ों को मुख्यतः 2 मकसद से पाला जाता है।
- ऊन के लिए
- मीट के लिए
एक भेड़ से एक बार में 500 ग्राम से 800 ग्राम तक ऊन मिलता है। सालभर में 2 बार ऊन मिलता है। ऊन से ज्यादा भेड़ की मीट से ज्यादा कमाई होती है।
अगर आप 3 महीने की भेड़ खरीद रहे हैं तो अगले 6 महीने में उसका वजन 25 किलो तक हो जाता है। इसमें से 40-50% हिस्सा अच्छा मीट होता है। आपको बता दें, औसतन एक भेड़ से 10-15 किलो तक अच्छा मीट प्राप्त हो जाता है।
कुछ भेड़ 50 किलो तक भी वजनी हो जाते हैं। इन्हें फीडर लैम कहा जाता है। इस तरह से 3 हजार में खरीदे गए एक मेमने को आप 6 महीने बाद ही 8-10 हजार तक में बेचकर लागत जितना ही मुनाफा कमा सकते हैं।
भेड़ पालन में दूध, चमड़ा और खाद भी आय के अन्य स्रोत
भेड़ों का दूध भी बेहद पौष्टिक होता है। इसमें गाय के दूध से ज्यादा विटामिन A, B और E, कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम और मैग्नियम होता है। अन्य पशुओं के दूध के मुकाबले इसमें कैंसर से लड़ने वाले तत्व CLA की मात्रा भी ज्यादा होती है।
इसके दूध का 25% तक चीज बनाया जा सकता है जबकि बकरी और गाय के दूध से 10% तक चीज बनता है। विश्व में चीज का 1.3% हिस्सा भेड़ों के दूध से ही बनता है।
भेड़ों की स्किन और खाद का भी बाजार बहुत अच्छा है। लेदर कंपनियां भेड़ों की स्किन से कई तरह के प्रोडक्ट बनाती हैं। भेड़ें मल के रूप में अपशिष्ट पदार्थ निकालती है, वह फसलों के लिए एक अच्छा खाद होता है। भेड़ें की गोबर की अच्छी कीमत मिलती है।
भेड़ में गर्भावस्था 5 महीने की होती है। साल में 2 बार इनमें प्रजनन हो सकता है। ऐसे में एक बार छोटे स्तर पर भेड़ खरीदने के बाद आपको बार-बार इन्हें खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती और इनकी संख्या बढ़ती रहती है।
भेड़ पालन में इन बातों का रखें खास ध्यान
- अगर भेड़ों को खुजली की शिकायत है, तो उन्हें खरीदने से बचें।
- भेड़ खरीदते समय उनके प्रजनन क्षमता की खास पड़ताल और पूछताछ करें।
- भेड़ों के बाढ़े में वेंटिलेशन होना चाहिए, रोजाना 5-6 घंटे उन्हें चरने देना चाहिए।
- इलाके में पाई जाने वाली संक्रामक बीमारियों के टीके पहले से ही लगवा लें।
- सूखे चारे और हरी घास के साथ-साथ इन्हें मक्का, ज्वार, बाजरा और मूंगफली भी दें।
- भेड़ से स्वस्थ मेमने लेने के लिए एक साल बाद ही गर्भधारण कराएं।
- भेड़ 17 दिन के बाद 30 घण्टे के लिये गर्मी में आती है।
- गर्मी के अंतिम समय में मेंढे से सम्पर्क करवाने पर गर्भधारण की अच्छी सम्भावनाएं होती हैं।
- गर्भावस्था और उसके बाद जब तक मेमने दूध पीते हैं, तब तक भेड़ के पालन पोषण पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
- इन्हें संतुलित और पोष्टिक आहार अन्य भेड़ों की तुलना में ज्यादा देना चाहिए।
- वहीं प्रजनन के पहले आहार में दाने की मात्रा बढ़ा देना चाहिए।
- मादा भेड़ को प्रजनन के लिए छोड़ने से पहले यह जरूर देख लें कि मेंढे के बाह्य जननेन्द्रियों की ऊन काट ली गई हो।
- मेढों को प्रजनन के लिए छोड़ने से पहले यह निश्चित कर लें कि उन्हें उस क्षेत्र में पाई जाने वाली संक्रामक बीमारियों के टीके लगा दिए गए हों।
- किस मेंढे से किन भेड़ों में गर्भधारण हुआ है और उससे कैसे मेमने पैदा हुए हैं, इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
- मेंढे का नस्ल के अनुसार कद व शारीरिक गठन अच्छा होना चाहिए।
- टेड़े खुर, उठा हुआ कंधा, नीची कमर वाले मेंढे से गर्भधारण न कराएं।
- 8 से 12 हफ्ते बाद मेमनों को मां से अलग कर दें।
भेड़ों में लगने वाले प्रमुख रोग और इलाज
भेड़ पालन (bhed palan) में इलाज की नौबत न आए इसलिए हमेशा सावधानियां बरतें। भारत में 80% भेड़ों की मौत भूखमरी, संतुलित आहार न मिलने, जलवायु से तालमेल न बैठा पाने, प्रजनन के दौरान, किसी अन्य जानवर का शिकार होने और निमोनिया, एसिडोसिस जैसी असंक्रामक बीमारियों से होती है। इनसे बचाने का सीधा उपाय यही है कि इलाके की जलवायु को सहन करने वाली भेड़ की नस्ल का ही पालन किया जाए और उसके खान-पान और रखरखाव का ध्यान रखा जाए।
भेड़ों में ब्लू टंग, ईटी, पीपीआर जैसी कुछ खतरनाक संक्रामक बीमारियां भी होती हैं। समय पर वैक्सीन लगवाना ही इनसे बचने का अच्छा उपाय होता है।
सूखे चरागाहों पर चरने वाले युवा भेड़ों में विटामिन्स और खनिजों की भारी कमी हो जाती है। इस कारण वे कई तरह के रोगों का शिकार हो जाते हैं। जैसे- कॉपर और कोबाल्ट खनिजों की कमी के कारण एनिमिया और डायरिया जैसे रोग हो जाते हैं। कैल्शियम-फास्फोरस और विटामिन-डी की कमी के चलते मेमनों में सूखा रोग और वयस्क भेड़ों में ओस्थियोमलेसिया रोग हो जाते हैं।
वहीं विटामिन-ए न मिल पाने के कारण रतौंधी, खुर दोष, वजन कम होना, बांझपन जैसी बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए भेड़ों को हरे चरागाह पर नियमित रूप से चराना चाहिए और सभी तरह के खनिजों और विटामिंस से भरपूर खान-पान का ध्यान रखना चाहिए।
कुछ और भी रोग हैं। जैसे- कंजेटियस एकथाईमा, एंथ्रेक्स, ब्रूसीलोसिस, फुट रोट, गला घोटूं, एंटीरोटोक्सिमिया, टेप वर्म, चर्म रोग आदि। अलग-अलग लक्षणों वाले हर रोग की सही पहचान और सही इलाज समय से कर लेना चाहिए।
भेड़ पालन के लिए उन्नत नस्लें
हमारे देश में भेड़ की 46 पंजीकृत नस्लें, इनमें से 14 नस्लें बेहद उन्नत नस्लें हैं। भेड़ पालन के लिए उन्नत नस्लों का ही चुनाव करें।
चोकला भेड़ (chokla sheep)
राजस्थान की यह नस्ल है। चोकला (chokla sheep) से बेहद उम्दा कारपेट ऊन निकलता है। इसके ऊन की लंबाई 6 सेमी तक होती है। यह सबसे बेहतर किस्म के कारपेट ऊन देने के लिए ही जानी जाती है। सालभर में इसका वजन भी 24 किलो तक हो जाता है। चोकला (chokla sheep) नस्ल का व्यवसाय ऊन और मीट दोनों उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
मेचेरी (mecheri sheep)
मेचेरी (mecheri sheep) तमिलनाडु के कोयम्बटूर इलाके में पाई जाती है। इसके बाल छोटे होते हैं, लेकिन इसकी चमड़ी बहुत उच्च स्तर की होती है। मेचेरी (mecheri sheep) नस्ल की चमड़ी बहुत महंगे दामों में बिकती है।
मारवाड़ी भेड़ (marwari sheep)
राजस्थान की यह नस्ल गुजरात के भी कुछ शुष्क इलाकों में मिलती है। हर 6 महीने में मारवाड़ी भेड़ (marwari sheep) से 650 ग्राम तक ऊन मिल जाता है। मारवाड़ी भेड़ (marwari sheep) नस्ल के मेमने सालभर में 26 किलो तक वजनी हो जाते हैं।
मुजफ्फरनगरी भेड़ (muzaffarnagari sheep)
मुख्यतः उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर की यह नस्ल यूपी, हरियाणा, दिल्ली और उत्तराखंड में पाई जाती है। मुजफ्फरनगरी भेड़ (muzaffarnagari sheep) हर 6 महीने में 600 ग्राम तक ऊन देती हैं। यह 32 किलो वजन तक की होती हैं। ऊन और मांस उत्पादन दोनों के लिए मुजफ्फरनगरी भेड़ (muzaffarnagari sheep) का पालन किया जाता है।
पाटनवडी भेड़ (patanwadi sheep)
इसे देसी, कुटची, वधियारी और चारोतरी भी कहते हैं। पाटनवडी भेड़ (patanwadi sheep) हर 6 महीने में इससे 600 ग्राम तक ऊन मिल जाता है। यह 25 किलो तक वजनी हो जाती हैं।
डेक्कनी भेड़ (deccani sheep)
महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है। स्थानीय भाषा में इसे सोलापुरी, कोलापुरी, संगामनरी और लोनंद कहा जाता है। पतले गले और सीने वाली यह भेड़ काले रंग की होती है। मुख्यतः मांस उत्पादन के लिए डेक्कनी भेड़ (deccani sheep) का व्यवसाय किया जाता है।
मालपुरा भेड़ (malpura sheep)
राजस्थान की यह नस्ल लंबे पैरो वाली और दिखने में बहुत ही खूबसूरत होती है। इनसे 6 महीने में 500 ग्राम ऊन मिल जाता है। सालभर में मालपुरा भेड़ (malpura sheep) का वजन 26 किलो तक पहुंच जाता है।
नेल्लौर भेड़ (Nellore Sheep)
आंध्रप्रदेश के नेल्लौर जिले और उसके आसपास पाई जाती है। लंबे कद वाली नेल्लौर (Nellore Sheep) नस्ल 3 वैरायटी में मिलती है- पल्ला, जोडिपी, डोरा। जन्म के वक्त मेमने का वजन 3 किलो होता है, एक साल में नेल्लौर भेड़ (Nellore Sheep) 27 किलो तक की हो जाती है।
गद्दी भेड़ (gaddi sheep)
भेड़ों की यह नस्ल जम्मू, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पाई जाती है। हर 6 महीने में 450 ग्राम तक ऊन मिलता है। सालभर में गद्दी भेड़ (gaddi sheep) के मेमने 17 किलो वजनी हो जाते हैं।
नीलगिरी भेड़ (nilgiri sheep)
तमिलनाडू नस्ल में पाई जाती है। मीडियम साइज वाली नीलगिरी भेड़ (nilgiri sheep) सफेद रंग की होती है। कुछ में भूरे धब्बे भी होते हैं। ऊन के लिए नीलगिरी भेड़ (nilgiri sheep) का पालन किया जाता है। इसका ऊन की लंबाई 5 सेमी तक होती है। हर 6 महीने में इससे आधा किलो ऊन मिलता है।
कोयम्बटूर भेड़ (coimbatore sheep)
तमिलनाडु के कोयम्बटूर और इससे सटे इलाको की जलवायु इस नस्ल के लिए बेहतर होती है। कोयम्बटूर भेड़ (coimbatore sheep) हर 6 महीने में 400 ग्राम तक ऊन देती है। इसके ऊन का व्यास 41 माइक्रोन तक होता है।
बेल्लारी भेड़ (bellary sheep)
कर्नाटक के बेल्लारी में पाई जाती है। एक साल की होने तक वजन 19 किलो होता है। बेल्लारी भेड़ (bellary sheep) से हर 6 महीने में 300 ग्राम ऊन मिलता है। ऊन का व्यास 60 माइक्रोन तक होता है।
बोनपाला भेड़ (bonpala sheep)
बोनपाला (bonpala) नस्ल दक्षिणी तिब्बत की है। ऊंचे लंबे कद की यह नस्ल सफेद से लेकर काले तक कई तरह की टोन में मिलती है। बोनपाला भेड़ (bonpala sheep) पूरी तरह बालों से ढक जाती है। इससे हर 6 महीने में 500 ग्राम से ज्यादा ऊन मिलता है।
छोटानागपुरी भेड़ (chottanagpuri sheep)
छोटानागपुरी भेड़ (chottanagpuri sheep) नस्ल झारखंड में मिलती है। कम वजनी यह जानवर हल्के ग्रे और भूरे रंग के होते हैं। पूंछ पतली और छोटी होती है। ऊन खुरदुरा होता है।
भेड़ पालन के लिए सरकारी योजनाएं और अनुदान
भेड़ पालन (bhed palan) को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में कई तरह की योजनाएं चलाती हैं। ये अपने राज्यों में भेड़ पालन को ज्यादा मुनाफे का व्यवसाय बनाने के लिए रिसर्च संस्थान भी खोलती हैं, जहां देश में पाई जाने वाली अलग-अलग नस्लों पर शोध होते रहते हैं। इन्हीं संस्थानों में भेड़ पालन से जुड़ी वर्कशॉप भी आयोजित होती रहती हैं। कोई भी किसान भेड़ पालन व्यवसाय से जुड़ी जरूरी जानकारियां और सरकारी योजनाओं के बारे में जानने के लिए अपने राज्य में स्थित इन संस्थानों या जिले के कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं।
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ये तो थी, भेड़ पालन (Bhed palan) की जानकारी, ऐसे ही पशुपालन, कृषि, ग्रामीण विकास और बिजनेस आइडिया संबंधित ब्लॉग पढ़ने के लिए आज ही द रूरल इंडिया वेबसाइट विजिट करें।